Thank you Maa...There is no like you.

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"वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया

माँ के आँखें मूँदते ही घर अकेला हो गया"

हृदय को भेदने वाली मुनव्वर राना की ये पंक्तियाँ माँ का दर्जा बखूबी बयां करती हैं. "माँ" शब्द लिखने और बोलने में हल्का लगता है, लेकिन उसका अस्तित्व और व्यक्तित्व समुद्र से भी गहरा है, जिसे समझने के लिए बहुत कम समय लगेगा. भगवान ने माँ को फरिश्ता बनाया है. वह हमारी पहली शिक्षिका है, मित्र है और प्रेरणा देती है. माँ ठंडी धूप है, सर्दी में गर्म धूप है. हमारे होने का एहसास वह देता है. एक माँ ही है जो अपने बच्चों की जिंदगी को खुशियों से भर देती है. वह अपनी खुशियों, इच्छाओं और सपनों को छोड़कर अपने बच्चे के लिए सपने बुनती है. ऐसे में बच्चों का भी कर्तव्य है कि अपनी माँ को विशिष्ट महसूस कराएँ, और इसके लिए उन्हें हर दिन को खास बनाने की कोशिश करनी चाहिए, किसी खास दिन के आने का इंतज़ार किए बिना.

लेकिन आज की व्यस्त ज़िंदगी में बच्चों के पास अपनी माँ के साथ बैठकर दो काम करने तक का वक्त नहीं है, या वे अपनी माँ को इतने हल्के में लेते हैं कि उन्हें कभी नहीं लगता कि उनकी माँ सभी जिम्मेदारियों को सिर पर उठाए रखती है, हर साल 365 दिन बिना छुट्टी के घर रहती है. हम दिन में कुछ समय दोस्तों से गपशप करने या फोन करने के लिए निकाल ही लेते हैं, चाहे वह पढ़ाई या ऑफिस के काम में व्यस्त हो. लेकिन माँ के मामले में, हम वक्त न होने का हवाला देकर अपने-आप को बचाने की कोशिश करते हैं. हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार मनोज मुंतशिर लिखते हैं:

"जो हर वक्त आस-पास रहे वो अक्सर नजर नहीं आता

मां के साथ भी यही होता है

पता नहीं कब घर के किसी कोने में खो जाती है

वो इतना दिखती है कि दिखना बंद हो जाती है"

हम भूल जाते हैं कि हमारे साथ रहने वाली माँ, जो बिना कहे हमारे भावों को समझती है, हम भी उसकी खुशियों का ख्याल रखना है. उसके सपनों का पता लगाओ; उसे क्या करना अच्छा लगता है पूछें. अपनी माँ के साथ अधिक से अधिक समय बिताओ. हम मदर्स डे पर अपनी माँ के साथ फोटो शेयर करते हैं; उन्हें उपहार देते हैं; अन्य दिनों में भी उनके साथ रहना बहुत अच्छा होगा. हमें ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने अपने साये के रूप में हमारे लिए एक माँ भेजी, जो हमारी पूरी ताकत लेती है. जब बच्चे पर आँच आती है, तो माँ चंडी बन जाती है. माँ नहीं होने पर घर अकेला रहता है. माँ विश्व की एकमात्र हस्ती है. इन्हीं भावों को शामिल करते हुए मनोज मुंतशिर ने लिखा-

"बहुत मसरूफ हो तुम समझता हूं

घर दफ्तर कारोबार और थोड़ी फुर्सत मिली तो दोस्त यार

ज़िन्दगी पहियों पर भागती है

ठहर के ये सोचने का वक्त कहाँ है

कि माँ आज भी तुम्हारे इन्तजार में जागती है

सुनो आज दो घड़ी बैठो उसके साथ

छेड़ो कोई पुराना किस्सा

पूछो कैसे हुई थी पापा से पहली मुलाकात

दोहरावो उसके गुजरे जमाने,

बजाओ मोहम्मद रफी के गाने

जो करना है आज करो कल सूरज सर पे पिघलेगा

तो याद करोगे कि मां से घना कोई दरख़्त नहीं था

इस पछतावे के साथ कैसे जीओगे

कि वो तुमसे बात करना चाहती थी

और तुम्हारे पास वक्त नहीं था।"

हम कितने भी रिश्तों से जुड़े हों, माँ के बिना हमारा जीवन अधूरा होता है. हर रिश्ता हमसे कुछ पाने की उम्मीद करता है, लेकिन माँ-बच्चे का रिश्ता ऐसा है कि माँ सिर्फ अपनी संतान को जीवन भर देना जानती है, बिना कुछ वापस पाने की उम्मीद के. माँ का संघर्ष और समझ भी बच्चे की सफलता का हिस्सा है. यहाँ पर, प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडिसन की बचपन की एक कहानी याद आती है.

थॉमस अल्वा एडिसन एक दिन स्कूल से घर आया और अपनी माँ को स्कूल से प्राप्त पत्र देते हुए कहा, "माँ, मेरे शिक्षक ने मुझे यह पत्र दिया है और कहा है कि इसे केवल अपनी माँ को ही देना." मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर इसमें क्या लिखा है, माँ. तब पत्र पढ़ते हुए माँ की आँखें रुक गईं और तेज आवाज़ में पत्र को पढ़ते हुए कहा, “आपका बेटा बहुत ही प्रतिभाशाली है।” उसकी प्रतिभा के आगे यह स्कूल बहुत छोटा है और उसे और बेहतर शिक्षा देने के लिए हमारे पास इतने योग्य शिक्षक नहीं हैं, इसलिए आप उसे खुद पढ़ाएं या उसे हमारे स्कूल से भी बेहतर स्कूल में पढ़ने को भेजें. ये सब सुनकर एडिसन खुद पर गर्व करने लगा और माँ की देखरेख में पढ़ाई करने लगा.

लंबी पढ़ाई के बाद एडिसन एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गए. उनकी माँ उन्हें छोड़कर चली गई थीं. एक दिन, घर में कुछ पुरानी यादों को खोजते हुए, उन्होंने अपनी माँ की अलमारी से वही पत्र निकाला जो उनकी स्कूल की शिक्षिका ने उन्हें दिया था. “आपका बेटा मानसिक रूप से बीमार है जिससे उसकी आगे की पढ़ाई इस स्कूल में नहीं हो सकती है, इसलिए उसे अब स्कूल से निकाला जा रहा है,” लेख में कहा गया था. उस पत्र को पढ़कर एडिसन भावुक हो गए और अपनी डायरी में लिखा, “थॉमस एडिसन तो एक मानसिक बीमार बच्चा था लेकिन उसकी माँ ने अपने बेटे को सदी का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बना दिया।”

यही कारण है कि माँ ने अपने बच्चों को ऐसे स्थानों तक पहुंचाया, जहां वे अकेले कभी नहीं जा सकते थे. वृद्धावस्था में भी माँ अपने बच्चे की रक्षा करती रहती है. यही कारण है कि एक साल में एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर क्या हम अपनी माँ का ऋण भुगतान कर सकते हैं? जवाब होगा "नहीं"; हम अपनी माँ का ऋण पूरी जिंदगी नहीं चुका सकते. लेकिन आज तक उसने हमारे लिए जो कुछ किया है, उसके लिए उन्हें सिर्फ "थैंक्यू" कहना चाहिए. याद रखना कि अगर आपकी माँ आपके साथ है, तो कोई भी चुनौती आसानी से पार हो जाएगी. हर किसी को मुनव्वर राना की ये पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए:

"कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे

माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी।।"

मुझे परेशान होने की क्या जरूरत या  मुझे किसलिए अकारण ही दुख प्रकट करना चाहिए, बल्कि मुझे तो इस प्रकृति शुक्रिया अदा करना चाहिए क्योंकि जो मेरे पास है बहुतों के पास तो वह भी नहीं | 

"मां तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद इस सुंदर सी दुनिया में लाने के लिए"

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