सुकरात, एक महान विचारक

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सुकरात (469 ई. पू.–399 ई. पू.) एक प्रसिद्ध यूनानी विचारक थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत बोलते थे और बदसूरत थे। सुकरात, सूफ़ियों की तरह, मौलिक शिक्षा और आचार का उदाहरण देना पसंद करते थे। वह सूफ़ियों की तरह साधारण शिक्षा और मानवीय नैतिकता पर जोर देते थे और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर हमला करते थे। सुकरात ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। सुकरात को युवा लोगों को बिगाड़ने, देवनिंदा और नास्तिक होने का झूठा दोष लगाया गया और इसके लिए उन्हें जहर देकर मारने का दंड दिया गया।

सुकरात का परिचय

सुकरात का जन्म यूनान की सीमा परस्थित एथेन्स के एक गांव में हुआ था । उनके पिता सोफ्रोनिसकस, संगतराश थे, और उनकी माता दाई का काम करती थीं। सुकरात ने अपना पूरा जीवन एथेंस में बिताया था। प्रारंभ में, सुकरात ने अपने पिता की नौकरी में हाथ बंटाया और उनकी मदद की। बाद में वह सेना में शामिल हो गया। वह पैटीडिया के युद्ध में साहसी थे। अपने भाषणों के कारण ही सुकरात को अपने समय के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था। सुकरात कुछ समय तक एथेंस काउंसिल के सदस्य भी रहे थे। उन्होंने हर जगह पूरी इमानदारी और सच्चाई से काम किया और कभी भी अन्याय का साथ नहीं दिया। वह चाहे अपराधी हो या निर्दोष, उन्होंने किसी को भी बुरा नहीं करने दिया।

सुकरात का व्यक्तित्व

सुकरात दिखने में अच्छे नहीं थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे बहुत बोलते थे। कुछ विद्वानों ने सुकरात को एथेंस में जन्मे महानतम लोगों से भी बड़ा बताया है। सुकरात एक अद्भुत मनीषी थे, जो पूरी तरह से ईमानदार, सच्चे और दृढ़ संकल्प वाले थे। वह धर्म के संस्थागत रूप को नहीं मानने वाले थे, बल्कि उसके सिद्धांतों को मानने वाले थे। उनकी मान्यताएं ईसाई धर्म की मान्यताओं से बहुत मिलती-जुलती थीं। सुकरात सुबह उठकर अपने घर से दूसरों को उपदेश देने चले गए। वह लोगों को सच्चे और सटीक ज्ञान देकर उनका सुधार करना चाहते थे।

मानवीय सदाचार का महत्व

सुकरात, सूफ़ियों की तरह, मौलिक शिक्षा और आचार का उदाहरण देना पसंद करता था। वस्तुत: उनके समकालीनों ने भी उसे सूफ़ी कहा था। वह सूफ़ियों की तरह साधारण शिक्षा और मानवीय नैतिकता पर जोर देते थे और उन्हीं की तरह पुरानी रूढ़ियों पर हमला करते थे। उसने कहा, "सच्चा ज्ञान संभव है, बशर्ते उसके लिए ठीक-ठीक प्रयत्न किया जाए; हम संबंधित घटनाओं पर विचार करके हमें जो बातें समझ में आती हैं या हमारे सामने आई हैं, उन्हें विश्लेषण करके एक निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं। ज्ञान सबसे श्रेष्ठ है।"

जीवन का दृष्टिकोण (जीवन दर्शन)

सुकरात ने बुद्ध की तरह कोई ग्रंथ नहीं लिखा। बुद्ध के उपदेशों को उनके शिष्यों ने उनके जीवनकाल में ही कंठस्थ करना शुरू किया था, जिससे आज हम उनके बहुत सीधे विचारों को जान सकते हैं। लेकिन सुकरात के उपदेशों में ऐसा नहीं है। सुकरात की जीवनदृष्टि क्या थी? यह सिर्फ उनके व्यवहार से पता चलता है, लेकिन कई लेखक इसे अलग-अलग ढंग से समझाते हैं। सुकरात की मर्यादित जीवनयोपभोग और प्रसन्नमुखता को दिखलाकर कुछ लेखक कहते हैं कि वह भोगी था। दूसरे लेखक उन्हें सादा जीवन का पक्षपाती बताते हैं, जो शारीरिक कष्टों से बचने और आवश्यकता पड़ने पर जीवन सुख को भी छोड़ देंगे।

धर्म से जुड़े भ्रामक प्रश्नों का उत्तर देने के लिए उन्होंने प्रश्नोत्तर प्रणाली का प्रयोग किया और कहा कि हम सभी अज्ञानी हैं। मैं खुद को सबसे बड़ा अज्ञानी मानता हूँ। इसलिए मैं भी आप में सबसे बुद्धिमान हूँ; क्योंकि मैं अपनी अज्ञानता को जानता हूँ। आत्मा परमेश्वर है। आत्मा कभी मरती नहीं। शरीर नष्ट हो जाता है। आत्मा को सर्वश्रेष्ठ गुणों से भरो। यह सही है।

सबसे बड़ा सदगुण बुद्धि है। बुद्धिमान व्यक्ति हर जगह सन्तुलन बनाए रखता है। शिक्षित व्यक्ति सही-गलत का निर्णय ले सकता है। अतः हर व्यक्ति शिक्षित होना चाहिए। सुकरात के एक शिष्य ने एक बार पूछा कि चन्द्रमा में कलंक क्यों रहता है और दीपक तले अंधेरा क्यों रहता है?

“तुम्हें दीप का प्रकाश और चंद्रमा की ज्योति नहीं दिखाई देती,” सुकरात ने कहा। इस दुनिया में हर चीज के दो पक्ष होते हैं। जो लोग अच्छे दिखना चाहते हैं, उन्हें सब कुछ अच्छा लगता है। जो लोग बुरा देखना चाहते हैं, उन्हें हर चीज बुरी लगती है।वह अपने शिष्यों को मूर्ख और बुद्धिमान की पहचान बताते हुए कहा कि जो अपने अनुभवों से लाभ नहीं उठाता, वही मूर्ख है। अपने अनुभवों से सीखना बुद्धिमान है।

उसने अपनी तर्कपूर्ण बातों से लोगों को आत्मा का स्वरूप, प्रकृति का सत्य, ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग और मृत्यु का सत्य बताया. उन्होंने शिक्षा, समाज, धर्म और राजनीति सहित कई विषयों को भी सच बताया।

हवाई बहस सुकरात को पसंद नहीं था। वह एथेंस में एक अत्यंत गरीब घर में जन्मा था। महान विद्वान और प्रसिद्ध होने पर भी वे शादी नहीं करना चाहते थे। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था ज्ञान का आदान-प्रदान करना। उनके शिष्यों 'अफलातून' और 'अरस्तू' ने उनका काम पूरा किया। उनके विचार दो भागों में विभाजित हो सकते हैं:

  1. अरस्तू का प्रयोगवाद ।
  2. सुकरात का गुरु-शिष्य यथार्थवाद ।
सुकरात के खिलाफ मुकदमा

399 ईसा पूर्व में, सुकरात के प्रतिद्वंद्वी सुकरात को समाप्त करने में सफल रहे। सुकरात पर मुकदमा चलाया गया था। सुकरात पर मुख्यतः तीन आरोप लगाए गए:

  • पहला आरोप था कि वह मान्यताप्राप्त देवताओं को नहीं मानता और उनमें विश्वास नहीं करता।
  • दूसरा आरोप था कि उसने राष्ट्रीय देवताओं की जगह एक कल्पित जीवन देवता बनाया था।
  • तीसरी शिकायत थी कि वह शहर के युवा लोगों को भ्रष्ट कर रहा था।
जब सुकरात पर मुकदमा चल रहा था, उसने कहा कि "एक व्यवसायी वकील पुरुषत्व को व्यक्त नहीं कर सकता।"“मेरे पास जो कुछ था, वह मैंने एथेंसवासियों की सेवा में लगा दिया,” सुकरात ने अदालत में कहा। मित्रों को खुश करना मेरा एकमात्र लक्ष्य है। परमात्मा ने मुझे बताया कि मैं इसे करना अपनी जिम्मेदारी समझता था। आप लोगों के कार्य से परमात्मा के कार्य को अधिक महत्व देता हूँ। यदि आप मुझे इस शर्त पर छोड़ दें कि मैं सत्य की खोज छोड़ दूँ, तो मैं आपको धन्यवाद देकर यह कहूँगा कि मैं अपने वर्तमान कार्य को परमात्मा की आज्ञा का पालन करते हुए अंतिम श्वास तक नहीं छोड़ सकूँगा। सत्य की खोज करने तथा अपनी आत्मा को सुधारने की कोशिश करने के बजाय लोग धन और सम्मान की ओर अधिक ध्यान देते हैं। आप लोगों को इस पर गर्व नहीं है?“मैं समाज का कल्याण करता हूँ, इसलिए मुझे खेल में विजयी होने वाले खिलाड़ी की तरह सम्मानित किया जाना चाहिए,” सुकरात ने कहा।"

विष का सेवन

न्यायाधीश को सुकरात की बात सुनकर गुस्सा आया। क्योंकि सुकरात ने न्यायालय को छोड़ दिया था। न्यायाधीशों का अंतिम निर्णय था कि सुकरात को विष पीना होगा और उसे मृत्युदंड देना होगा। मृत्यु दंड की घोषणा को शांत भाव से स्वीकार करते हुए कहा, "ठीक है।" विदा होने का समय आ गया है। आपके लिए जीवन है और मेरे लिए मृत्यु है। मैंने एथेन्स के लोगों को खुश करने के लिए कुछ भी किया है। मैं आप लोगों की इच्छा से सत्य का साथ नहीं छोड़ सकता।जब सुकरात को मृत्युदण्ड सुनाया गया, तो एथेन्स में धार्मिक उत्सव हुए। उन्हें एक महीने बाद यह सजा मिलनी चाहिए थी। उन्हें बेड़ियों से जकड़कर जेल में डाला गया। क्रीटो, सुकरात की पत्नी जैन्थआइप और उनका छोटा लड़का भी निर्धारित समय पर रो रहे थे जब विष का प्याला उनके सामने रखा गया। सुकरात ने भोजन करते हुए कोई मानसिक तनाव नहीं देखा। वे रोते हुए लोगों को शांत कर रहे थे। सुकरात धीरे-धीरे विष से मर रहा था। ई० पू० 399 में वे इस जगत से विदा हो गए।


1. मैं सभी जीवित लोगों में सबसे बुद्धिमान हूँ, क्योंकि मैं ये जानता हूँ कि मैं कुछ नहीं जानता हूँ।
I am the wisest man alive, for I know one thing, and that is that I know nothing.

सुकरात

2. शादी या ब्रह्मचर्य, आदमी चाहे जो भी रास्ता चुन ले, उसे बाद में पछताना ही पड़ता है।
As to marriage or celibacy, let a man take which course he will, he will be sure to repent.

सुकरात

3. किसी से भी दोस्ती धीमे से करो, लेकिन जब कर लो तो उस पर दृढ़ और लगातार बने रहो।
Be slow to fall into friendship; but when thou art in, continue firm and constant.

सुकरात

4. एक ईमानदार आदमी हमेशा एक बच्चा होता है।
An honest man is always a child.

सुकरात

5. चाहे जो हो जाये शादी कीजिये. अगर अच्छी पत्नी मिली तो आपकी ज़िन्दगी खुशहाल रहेगी ; अगर बुरी पत्नी मिलेगी तो आप दार्शनिक बन जायेंगे।
By all means, marry. If you get a good wife, you’ll become happy; if you get a bad one, you’ll become a philosopher.

सुकरात

6. सौंदर्य एक अल्पकालिक अत्याचार है।
Beauty is a short-lived tyranny.

सुकरात

7. हर व्यक्ति की आत्मा अमर होती है, लेकिन नेक मनुष्य की आत्मा अमर और दिव्य होती है।
All men’s souls are immortal, but the souls of the righteous are immortal and divine.

सुकरात

8. मृत्यु संभवतः मानवीय वरदानो में सबसे महान है।
Death may be the greatest of all human blessings.

सुकरात

9. जहाँ सम्मान है वहां डर है,पर ऐसी हर जगह सम्मान नहीं है जहाँ डर है, क्योंकि संभवतः डर सम्मान से ज्यादा व्यापक है।
Where there is reverence there is fear, but there is not reverence everywhere that there is fear, because fear presumably has a wider extension than reverence.

सुकरात


10. इस दुनिया में सम्मान से जीने का सबसे महान तरीका है कि हम वो बनें जो हम होने का दिखावा करते हैं।
The greatest way to live with honor in this world is to be what we pretend to be.

सुकरात

11. हमारी प्रार्थना बस सामान्य रूप से आशीर्वाद के लिए होनी चाहिए, क्योंकि भगवान जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है।
Our prayers should be for blessings in general, for God knows best what is good for us.

सुकरात

12. ज़िन्दगी नहीं, बल्कि एक अच्छी ज़िन्दगी को महत्ता देनी चाहिए।
Not life, but good life, is to be chiefly valued.

सुकरात

13. अधिकतर आपकी गहन इच्छाओं से ही घोर नफरत पैदा होती है।
From the deepest desires often come the deadliest hate.

सुकरात

14. झूठे शब्द सिर्फ खुद में बुरे नहीं होते, बल्कि वो आपकी आत्मा को भी बुराई से संक्रमित कर देते हैं।
False words are not only evil in themselves, but they infect the soul with evil.

सुकरात

15. अपना समय औरों के लेखों से खुद को सुधारने में लगाइए, ताकि आप उन चीजों को आसानी से जान पाएं जिसके लिए औरों ने कठिन मेहनत की है।
Employ your time in improving yourself by other men’s writings, so that you shall gain easily what others have labored hard for.

सुकरात

16. वो सबसे धनवान है जो कम से कम में संतुष्ट है, क्योंकि संतुष्टि प्रकृति कि दौलत है।
He is richest who is content with the least, for content is the wealth of nature.

सुकरात


17. सिर्फ जीना मायने नहीं रखता, सही तरीके से जीना मायने रखता है।
It is not living that matters, but living rightly.

सुकरात

18. मूल्यहीन व्यक्ति केवल खाने और पीने के लिए जीते हैं; मूल्यवान व्यक्ति केवल जीने के लिए खाते और पीते हैं।
Worthless people live only to eat and drink; people of worth eat and drink only to live.

सुकरात

19. जागरूकता में ही बुद्धिमता का उदय होता है।
Wisdom begins in wonder.

सुकरात

20. सौंदर्य वह चारा है जो खुशी से मनुष्य को अपनी तरह का विस्तार करने के लिए मजबूर करता है।
Beauty is the bait which with delight allures man to enlarge his kind.

सुकरात

21. साहसी आदमी वो हे जो भागता नहीं हैं, वह अपने जगह दृढ़ रहता हैं और अपने दुश्मन से लड़ाई करता हैं।
He is a man of courage who does not run away, but remains at his post and fights against the enemy.

सुकरात

22. यदि सभी के दुर्भाग्य अलग अलग  ढेर में रखे गए हो, जहां से सभी को बराबर हिस्सा लेना हो, तो अधिकांश लोग स्वयं के ढेर को लेने और प्रस्थान करने के लिए संतुष्ट होंगे
If all misfortunes were laid in one common heap whence everyone must take an equal portion, most people would be contented to take their own and depart.

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